“मशीनें उदार हैं या विपत्ति? मशीनों को विपत्ति मानने वालों को याद रखना चाहिए कि हमारी प्रत्येक मानवीय इंद्री किसी मशीन से कहीं अधिक प्रबल है। मशीन व्यक्ति के चाकर की तरह कार्य करती है। यदि उसे विध्वंसक कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, वह व्यापक तबाही फैला सकती है। हालाँकि, उसी मशीन को नेक तथा समझदार मानव मस्तिष्क कुशलता से इस्तेमाल कर सकते हैं। अतः, बहस का मुद्दा मशीन और उसके गुण नहीं बल्कि मानवता है। बेरोजगारी का कारण मशीनीकरण नहीं बल्कि स्रोतों और पूंजी का अनुचित वितरण है, इस संबंध में दोष सामाजिक ढांचे और बुराइयों का है। यदि उनमें संशोधन होता है तो यह समस्याएं स्वतः ही दूर हो जाएंगी।
यदि कोई देश अपने खाद्यान्न एवं कपड़ा निर्माण में मशीनीकरण की मदद से सफलतापूर्वक वृद्धि करना चाहता है, और उसके बावजूद वहाँ के लोग भूखे और नंगे रहते हैं, तो क्या दोष हम निर्माणकर्ता मशीनों के सिर मढ़ेंगे? केवल विज्ञान, आधुनिक सोच और औद्योगिकरण की मदद से हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि भारत के प्रत्येक पुरुष तथा स्त्री के पास काम हो, खाने को रोटी और पहनने को कपड़ा हो तथा वह खुशहाल जीवन जीये।”
– हिंदू संघटक सावरकर
संदर्भ – सावरकर भूले बिसरे अतीत की एक गूंज