स्वातंत्र्यवीर सावरकर का ‘हिंदी’ राष्ट्र !

आमतौर पर समाज में यह भ्रम होता है कि सावरकर हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना चाहते , पूरा भारत हिंदू राष्ट्र घोषित करना चाहते थे। लेकिन यह असत्य है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर पूरे हिंदू समुदाय को, उसके इतिहास को, संस्कृती को , हिंदू राष्ट्र कहते थे। यह दो शब्दों ‘राष्ट्र’ और ‘देश’ के बीच का अंतर है। ‘देश’ भौगोलिक सीमाओं पर आधारित है। तो एक ‘राष्ट्र’ अपने अविभाज्य इतिहास, परंपरागत पितृभूमी और पुण्यभूमी, संस्कृति और एककृत होने वाले प्रत्येक राष्ट्रवादी व्यक्ती पर आधारित होता है। सावरकर का हिंदू राष्ट्र क्या है यह एक अलग सवाल है। आइए भारतीय सीमा में एक अखंड धर्मनिरपेक्ष हिंदी राष्ट्र की स्थापना पर सावरकर के विचारों पर एक नजर डालते हैं।

  • हिंदू ही हिंदीराष्ट्र के इच्छुक है !

    यदि हिंदीराष्ट्र की यथार्थ भावना वांछित है , तो हिंदी स्वतंत्रता के संघर्ष और एक संयुक्त हिंदी राज्य की स्थापना में हिंदू सबसे आगे रहे हैं । हिंदी राज्य का स्वप्न अगर किसी के मन में पहले आया है तो वह उन्हीं के । अगर किसी ने अपने बलिदान और संघर्ष से उस राज्य को आज की व्यवहार्य राजनीति के कक्षा में लाया है , तो वह फिर से हिंदू है । हिन्दू अपनी शक्ति को ध्यान में रखते हुए अखंड हिंदी राज्य की स्थापना के इस सार्वभौम संघर्ष में अपने गैर – हिन्दू देशबंधु लोगों का सहयोग पाने के पक्ष में हमेशा से रहे हैं । जबकि गैर – हिंदू वर्ग और विशेष रूप से मुस्लिम राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान कहीं नहीं पाए जाते हैं और जब उस संघर्ष का फल काटने की बात आती हैं तो वे सबसे आगे होते हैं । इन सब से अज्ञात न होते हुए भी हिंदू इसे एक तरफ रख कर एक अखंड हिंदी राष्ट्र बनाने के इच्छुक हैं और हम भारत में गैर – हिंदू वर्ग पर कोई शक्ति या अधिकार बिल्कुल भी नहीं थोपना चाहते हैं ।

  • लेकिन वह हिंदी राज्य शुद्ध हिंदी हो।

    १ ) उस राज्य मै मताधिकार , नौकरियों , सत्ता के स्थान , कर के संबंध में धर्म और जाति के आधार पर किसी भी भेदभावपूर्ण भेदभाव को स्वीकार नहीं करना चाहिए । कोई भी आदमी हिंदू या मुस्लिम या ईसाई या यहूदी है ; यहां अनदेखा किया जाना चाहिए ।

    २ ) उस हिंदी राज्य के सभी नागरिकों के साथ उनकी व्यक्तिगत योग्यता के अनुसार व्यवहार किया जाए , भले ही उनकी सामान्य जनसंख्या का धार्मिक या जातीय प्रतिशत कुछ भी हो ।

    ३ ) और किसी भी थोपे गए और पागल कुटिल संस्कारों द्वारा भाषा और लिपि को भ्रष्ट करने के लिए किसी भी धार्मिक मकसद की अनुमति न दें ।

    ४ ) एक व्यक्ती को एक मत देने की अनुमती हो ।

    ५ ) हम हिंदू हैं ; या हमारे पास अन्य गैर – हिंदू बंधू की तुलना में हिंदी लोकसंख्या में बहुमत है , इन विशेष कारणों के बल पर , हिंदू एक हिंदी नागरिक के रूप में जो उपलब्ध है , उससे ज्यादा कुछ नहीं मांगते हैं । हम हिंदू नहीं बल्कि मुसलमान हैं ; यह विशेष गुण , हमारे स्थान पर है एसा वृथा भ्रम छोड ; क्या मुसलमान बिना किसी विशेष लाभ या सुरक्षा के इस सच्चे राष्ट्रीय हिंदी राज्य को पाने के लिए तैयार हैं ?

  • सच्ची एकता तभी होगी जब मुसलमानों को इसकी आवश्यकता होगी !

    जिस दिन “ हम , मुसलमनो के सहयोग के बिना स्वराज प्राप्त नहीं कर सकते है । ” एसी उनकी भावना हमने बना दी ; उसी दिन हमने सन्मान्य एकता को नष्ट कर दिया समझो । जब किसी देश में एक विशाल बहुमत , मुसलमानों जैसे विरोधी अल्पसंख्यक के सामने , याचकसमान मदद के लिए भीख माँगता है , और वह प्रतिपादन करता है कि उसकी बहुसंख्यक जाति उनके सहयोगबिना निश्चित रूप से मर जाएगी ; तब वह अल्पसंख्याक जाती अपनी सहकारिता भारी से भारी मोल मै क्रय करने लगती है , और अपना वर्चस्व स्थापित करने लगती है । मुसलमान हमेशा हिन्दुओं के सामने धमकी देते है कि अगर उनकी राष्ट्रविरोधी और कट्टर मांगों को पूरा नहीं किया गया , तो वह हिंदी राष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम में हिंदुओं का साथ नहीं देंगे ।

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    हिंदुत्वका मोल देकर मिलने वाला स्वराज आत्महत्या समान है।

    हिंदीराष्ट्र हिंदुओं को उन्हें एक बार और अंतिम कहना चाहिए , ” मित्रो , जिसमें सभी नागरिकों एक आदमी , एक मताधिकार है ; एसे एक हिंदी राज्य बनाने के लिए हमे आपसे एकता चाहिए थी , कि  जिस योग से , उसमे जाती या पंथ , वंश या धर्म , इनका विचार नहीं किया जायेगा । हम हिंदू यद्यपि बहुसंख्य है , तथापि हिंदुजगत के लिये हम कोई  विशेषाधिकार नहीं मांगते है , इतना ही नहीं , अगर मुसलमान भारत में अन्य जातियों के समान अधिकारों का उल्लंघन नहीं करने और उनके साथ भेदभाव नहीं करने या उनपर अधिकार जताने का प्रयास न करने का वचन देते हैं , तो हम उन्हें उनकी भाषा और संस्कृति की सुरक्षा में , विश्वास देने के पक्ष में हैं । लेकिन , हाल ही में , मुस्लिम जगत ( PAN – ISLAM ) आंदोलन की आक्रामक हिंदुस्तान विरोधी योजना और अरबिस्तान से अफगानिस्तान तक मुस्लिम राष्ट्रों द्वारा धार्मिक और सांस्कृतिक घृणा के साथ हिंदुओ को कुचलने के लिए उत्तर पश्चिमी सीमा पर से मुसलमानो की क्रूर प्रवृत्ति , चूँकि हम हिंदु अच्छी तरह से जानते हैं , तो हम आप पर और अधिक भरोसा नहीं कर सकते है ।”

  • हिंदुस्थान के गैर – मुस्लिम अल्पसंख्यक 

    भारत में अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हिंदी राष्ट्र का एकीकरण में कोई समस्या नहीं हो सकती है ।
    १ ] ब्रिटिश शासन के विरोध मे पारसी हिंदुओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं । वे कट्टर या मूर्ख नहीं हैं । महान दादाभाई नौरोजी से लेकर प्रख्यात क्रांतिकारी महिला कामाबाई तक , पारसियों ने हिंदी देशभक्ति में अपनी भूमिका निभाई है । उन्होंने हिंदू राष्ट्र के प्रति सद्भावना के अलावा कभी कोई दृष्टिकोन व्यक्त नहीं किया । वे संस्कृति की दृष्टि से भी हमारे सबसे करीबी रिश्तेदार हैं ।
    २ ) हिन्दी ईसाइयों के बारे में भी यही बात कुछ हद तक कही जा सकती है । भले ही उन्होंने आज तक राष्ट्रीय संघर्ष में बहुत कम भूमिका निभाई है , लेकिन उन्होंने ऐसा व्यवहार नहीं किया है जैसे वे हमारे गले में पत्थर फेंक देंगे । वे कम धार्मिक हैं , लेकिन राजनीतिक जानकारों का अधिक सम्मान करते हैं ।
    ३ ) यहूदियों की संख्या बहुत कम है । न ही वे हमारी राष्ट्रीय आकांक्षाओं के खिलाफ हैं । हमें यकीन है कि ये सभी अल्पसंख्यक बंधू हिंदी राज्य में प्राणनिक और देशभक्त नागरिक के रूप में व्यवहार करेंगे ।

  • हिंदी – राष्ट्र की राज्यघटना

    १ ] हर दूसरे देश में , बहुसंख्यक समुदाय को स्वतंत्र विशेषाधिकार और विशेष अधिकार प्राप्त हैं । हम वह नहीं मांग रहे है , किंतु हिंदू समुदाय अब अल्पसंख्यक समुदाय के पागलपन को , बहुसंख्यांक लोगो से अधिक अधिकार की मांग , एक मुस्लिम का मत तीन मतो के समान और तीन हिंदुओ का मत एक मत के समान , आदि सहन नहीं किया जायेगा । एक व्यक्ती एक मत यह तत्व स्वीकार किया जायेगा ।

    २ ) अल्पसंख्यकों को अपने धर्म का पालन करने , अपनी भाषा बोलने और अपनी संस्कृति विकसित करने की स्वतंत्रता होगी ; लेकिन इसे दूसरे समाज के समान अधिकारों पर अतिक्रमण नहीं करने देंगे ।

    ३ ) हमारी विदेश नीति भी एक स्पष्ट हिंदू दृष्टिकोन से तय की जाएगी । हम उन सभी राष्ट्रों पर विचार करेंगे जो हिंदू राष्ट्र के अनुकूल हैं और जो इसे हमारे मित्र और सहयोगी के रूप में मदद करेंगे । खिलाफत , पॅलेस्टाइन , अरब राष्ट्रोके ओर व्यर्थ ध्यान देकर हिंदूओ के हित की अवहेलना नहीं की जायेगी ।

    ४ ) बलात्कारी रुपसे होनेवाला धर्मांतर को स्वीकृती नहीं दी जायेगी । विचारशील धर्मांतरण का प्रश्न स्वतंत्र है ; लेकिन उसी सिद्धांत का पालन करते हुए हिंदुओं को भी ईसाई या मुसलमान बनने वालों के पुन : हिंदूकरण का कार्य जारी रखने और शुद्धिकरण आंदोलन को स्वीकृती रहेगी।

    ५ ) हिन्दुस्थान हिन्दुओं की भूमि ही रहना चाहिए । ऐसे में जहां हिंदुओं की बढ़ती लोकसंख्या को भारत में कई जगहों पर पर्याप्त जगह नहीं मिल रही है , ऐसे में गैर हिंदुओं को बाहर से बुलाकर कम लोकसंख्या वाले इलाकों में अपनी वस्तीया बसाने को अनुमती नहीं होगी ।

    ६ ) उत्तर – पश्चिमी सीमा पर प्रांतों की सुरक्षा कट्टर और मजबूत हिंदू सैनिकों द्वारा अच्छी तरह से की जा रही है या नहीं इसे ध्यान से देखा जाना चाहिए । नहीं तो सिन्धु नदी के उस पार विदेशी मुस्लिम राष्ट्रों से सांठ – गांठ कर हिन्दुस्थान को फिर से गैर – हिन्दू शत्रुओं के जाल में फँसाने का संकट खड़ा हो जाएगा !

    ७ ) प्रत्येक अल्पसंख्यक अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा में शिक्षित करने के लिए अलग – अलग विद्यालय , धार्मिक या सांस्कृतिक संस्थान और सरकारी अनुदान स्थापित कर सकते हैं लेकिन ऐसे अनुदान आम खजाने में भुगतान किए जाने वाले करों के अनुपात में उपलब्ध हो । और वही सिद्धांत , निश्चित रूप से , बहुमत पर लागू होता है ।

    ८ ) अल्पसंख्यक पृथक निर्वाचन क्षेत्र और जितने आरक्षित प्रतिनिधि चाहते हैं उन्हें मिलेगा ; लेकिन केवल उनकी संख्या के अनुपात में और इस शर्त पर कि जनसंख्या का अनुपात प्रतिनिधित्व करने वाले बहुमत के अधिकारों से वंचित नहीं रहेगा ।

  • ‘ हिन्दी राष्ट्रवाद ’ का लक्ष्य वस्तुतः उदात्त है ।

    समस्त हिन्दुस्थान को , राजनीतिक आयाम में एकजुट करने का लक्ष्य , हिंदुओं को आपत्तिजनक नहीं लगा ; और यह बहुत स्वाभाविक था । क्योंकि यह निरंतर हिंदुओं के दृष्टिकोन के अनुरूप था , जो विश्वव्यापी दृष्टिकोन से , तत्ववादी और लोकसंग्रहयता की ओर झुका हुआ था । वास्तव में पृथ्वी हमारी मातृभूमि है और मानव जाति हमारा राष्ट्र है । नहीं ! वेदांत और भी आगे बढ़कर कहती है , “ यह विश्व हमारा देश है और सितारों से लेकर पत्थरों तक सभी दृश्यमान चीजें हमारा वास है ” यही हमारे तुकोबा कहता है । ‘ सर्वं खल्विदं ब्रह्म ‘ ऐसे धार्मिक और सांस्कृतिक दर्शन को जो मानते हैं , उन्हें यह आकर्षक कैसे न लग सकता है ? लेकिन वह ब्रह्म भी राजनीतिक और दार्शनिक रूप से भी ‘ माया ‘ के विभाजनकारी सिद्धांत का एक और हिस्सा है । लेकिन , उस लक्ष्य के उत्साह में उन हिंदू देशभक्तों ने उसी बात को दुर्लक्षित कर दिया ! ‘ यदि सब हिन्दुस्तान एक हो जाए तो ! ‘ हां ; लेकिन वो ‘ यदि ‘ सबसे बड़ा घोटाला था ! ‘ हिंदी राष्ट्र ‘ की नई अवधारणा भारत की क्षेत्रीय एकता के समान आधार पर बनी थी । हिंदुओ के लिये ‘ हिंदी देशभक्ति ‘ हिंदू देशभक्ति का एक और पर्यायशब्द था । उनकी संस्कृती प्रादेशिक भारतसे एकरूप थी ।

  • हिंदी एकता या धार्मिक विभाजन ?!

    उनमें से कुछ हिंदुओ ने तो अपना हिंदुत्व छोड देना भूषणावह समझा , वह केवल ‘ हिंदी ‘ ( भारतीय ) थे । ऐसा करके हम देशभक्ति का एक महान आदर्श प्रस्थापित कर रहे हैं ; यह मानते हुए , वह मुसलमानों को भी उनके जातीय अस्तित्व से दूर लेकर क्षेत्रीय हिंदी राष्ट्र में , नाममात्र के तरीके से समाविष्ट कर देंगे , यह कल्पना कर बेठे । लेकिन मुसलमान पहले और बाद में मुसलमान ही रहे । ‘ हिंदी ‘ कभी नहीं हुए ! लाखों संकटग्रस्त हिंदू कारावास में गए , हजारों अंदमान गए और सैकड़ों फांसी पर चढ़ गए , सभी ‘ हिंदी ‘ लोगों के लिए समान राजनीतिक अधिकार प्राप्ती के लिए । अंग्रेजों से लड़ते हुए । तब तक मुसलमान बस धरने पर बैठे और देखते ही रह गए ! लेकिन एक तरफ कांग्रेस समर्थक हिंदुओं द्वारा चलाए गए निशस्त्र प्रतिरोध आंदोलन और दूसरी ओर हिंदू क्रांतिकारियों के नेतृत्व में अधिक उग्र और अधिक प्रभावी सशस्त्र आंदोलन के उग्र संघर्ष ने ब्रिटिश सरकार पर कुछ पर्याप्त दबाव डाला । तभि तुरंत , मुसलमान तेजी से दौड़ते हुए आए ; और “ हम हिंदी हैं ; हम चाहते हैं कि हमारा हिस्सा हमे पुरी तरह से प्राप्त हो “। अंततः , चीजें उस बिंदु पर पहुंच गईं , जहां वास्तव में , मुस्लिम लीग जैसे प्रतिनिधि मुस्लिम संगठन ने निर्लज्जता से सुझाव दिया कि हिंदुस्तान को ‘ मुस्लिम हिंदुस्तान ‘ और ‘ हिंदु हिंदुस्तान ‘ में विभाजित किया जाए । हिंदी एकता के हेतू लढने वाले हिंदुओ का यह शोचनीय भवितव्य था ।

  • निष्कर्ष-

    ” हिंदू हिंदीराष्ट्र को स्वीकार करने के लिये पहले से ही प्रयासरत थे । अगर सच्चा हिंदीराष्ट्र बनाना होगा तो वहा किसीं भी भेदभाव को स्थान न देते हुए, हिंदुत्व को बिना नष्ट किये हुए , धार्मिक कट्टरता का कडा प्रतिरोध करते हुए , और किसी भी जाती या समयुदाय का लांगुलचालन न करते हुए ही बन सकता है। वहा हर व्यक्ती हिंदी नागरिक के रूप मै ही हो तभी हम ऐसे हिंदीराष्ट्र से सहमत होंगे। “ ऐसा है वीर सावरकर का हिंदीराष्ट्र ।


Source : Hindu Rashtra Darshan
Featured Art Credit : https://www.indiefolio.com/

via @idealist_ak

3 thoughts on “स्वातंत्र्यवीर सावरकर का ‘हिंदी’ राष्ट्र !

  1. It’s not hindi rashtra it’s hindu rashtra not everyone in India speaks hindi, we have lot cultural and language diversity and also if u can plz change the headline

    1. Don’t take it literally.
      Like Hindi Rashtriya Sabha is the congress of that time. Hindi Rashtra is not a nation of Hindi speakers but a geographical region consisting of Hindu, Muslim and other communities with equal rites. Is a truly secular country. We will upload the concept of Hindu Rashtra later

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