Veer Savarkar’s Urdu Gazals | वीर सावरकर की उर्दू ग़ज़लें

हिंदोस्ताँ मेरा

यही पाओगे मेहशरमें जबां मेरी, बयाँ मेरा
मैं बंदा हिंदवाला हूँ, यह हिंदोस्ताँ मेरा

मैं हिंदोस्ताँ के उजडे खंडहर का एक जरां हूँ
यही सारा पता मेरा, यही नामोनिशां मेरा

मेरा है रक्त हिंदी, जात हिंदी, ठेठ हिंदी हूँ

यही मजहब, यह फिर्का, यही हैं खानदाँ मेरा

कदम लूँ मादरे हिंदोस्ताँ की बैठते उठते

मेरी ऐसी कहाँ किस्मत, नसीबा यह कहाँ मेरा

तेरी सेवामें ऐ भारत अगर सर जाये तो जाये

तो मैं समझू कि हैं मरना हयाते-जाविदाँ मेरा

हमी (हम ही) हमारे वाली हैं

जीती दुनिया उसी सिकंदर पर भी जो के शेर हुआ
भागे युनानी भारत आके जो न तनीक भी देर हुआ

महाराज कहाँ वो आज श्री चंद्रगुप्त बलशाली हैं
रक्त रक्त में अपने भाई हमी हमारे वाली हैं

जापान, जावा, चीन, मेक्सिको चरणों पर था झूल रहा

जिस भारत के, देश जहाँ था हैं वो आज भी भाई वहाँ।।

सुवर्णभूमी खाना पीना, गंगा देने वाली हैं

फिर देर क्यों, उठो भाई, हमी हमारे वाली हैं।।

बीज वहीं हैं, रक्त वहीं हैं, देश वहीं हैं देवों का

सिरफ ठिलाई अपनी खुद की देती हमको हैं धोका।

एक दो नहीं। तीस कोटी हम हिंदी भाई भाई हैं

रोके हम को कौन, कौममें ताकत ऐसी आयी हैं।।

उतनेमें से एक कोटी भी होंगे जो नवयुवा खडे

धीरजमें रणमरणतेज में एक एकसे चढे बढे।

सिरफ करेंगे हुकूम, लाओ बे भारत का हैं ताज कहाँ.

पावोगे वो आजादीका ताज आज के आज यहाँ।।

हन्ता रावण का हैं अपना राम वीरवर सेनानी

कर्मयोग का देव हैं, स्वयं कृष्ण सारथी अभिमानी।

भारत तेरे रथको सेना कौन रोकनेवाली हैं

फिर देर क्यों, उठो भाई, हमी हमारे वाली हैं।

खुशी के दौर

खुशी के दौर दौरे से है यां रंजों मुहन पहिले
बहार आती हैं पीछे और खिजां गिरदे चमन पहिले

मुहिब्बाने वतन होंगे हजारों बेवतन पहिले
फलेगा हिंद पीछे और भरेंगा अंदमन पहिले

अभी मेराजका क्या जिक्र, यह पहिली ही मंझिल हैं
हजारों मंजिलों करनी हैं ते हमको कठन पहिले

मुनव्वर अंजुमन होती हैं, महफिल गरम होती हैं

मगर कब जब के खुद जलती हैं, शमा-ए-अंजुमन पहिले

हमारा हिंद भी फूले फलेगा एक दिन लेकिन

मिलेंगे खाक में लाखों हमारे गुलबदन पहिले

उन्ही के सिर रहा सेहरा, उन्हीं पे ताज कुर्बा हो

जिन्होंने फाडकर कपडे रखा सिरपर कफन पहिले

न हो कुछ खौफ मरनेका, न हो कुछ फिक्र जीने की

अगर ऐ हमदमों मन में लगी हो यह लगन पहिले

हमारा हिंदभी युरोपसे ले जायेगा बाजी

तिलक जैसे मुहिब्बाने वतन हो इंडियन पहिले

न सहत की करे परवा, न हम दौलत के तालिब हो

करे सब मुल्क पर कुरबान तन मन और धन पहिले

हमे दुःख भोगना लेकिन हमारी नस्ले सुख पाने

यह मनमें ठान लें अपने ये हिंदी मर्दोजन पहिले

मुसीबत आ, कयामत आ, कहाँ जंजीरों, जिंदा हैं

यहां तैय्यार बैठे है, गरीबाने वतन पहिले

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