हिन्दुत्व कोई धर्ममत नहीं है – वीर सावरकर

जिस प्रकार वेद नामक धर्म ग्रन्थ के कारण उसके अनुयायियों को वैदिक, बुद्ध नाम पर उसके धार्मिक अनुयायियों को बौद्ध, जिन मतानुयायियों को जैन – गुरु नानकजी के धर्मशिष्यों को सिक्ख, विष्णु देवता के उपासकों को वैष्णव, लिंगपूजकों को लिंगायत ये नाम प्राप्त होते हैं, वैसे हिन्दू यह नाम किसी भी धर्मग्रन्थ से या धर्म संस्थापक से या धर्ममत से प्रमुखतः या मूलतः निर्मित नहीं हुआ है । वह तो आसिन्धुसिन्धु प्रसृत देश का एवं उसमें निवास करने वाले राष्ट्र का ही प्रमुख रूप से निर्देश करता है और फिर इसी सन्दर्भ” में उसकी धर्म संस्कृति का भी ।

एतदर्थ ही हिन्दू शब्द की परिभाषा को केवल किसी धर्मग्रन्थ से या धर्ममत से बन्धित करने वाले प्रयास दिशा भ्रम उत्पन्न करने वाले हैं । हिन्दू शब्द की परिभाषा का मूल ऐतिहासिक प्राधार सिन्धु सिन्धु भारत भूमिका ही होना चाहिए । वह देश तथा ‘उसमें उत्पन्न धर्म एवं संस्कृति के बन्धनों से अनुप्राणित राष्ट्र, ये ही हिन्दुत्व के दो प्रमुख घटक हैं । अतएव हिन्दुत्व के इतिहास से यथा – सम्भव सम्बन्धित होने वाली परिभाषा इसी प्रकार की होगी कि, “यह आसिन्धु सिन्धु भारत भूमिका, जिसकी पितृभू एवं पुण्यभू है, वही हिन्दू है । “

– वीर सावरकर
(हिंदुत्व के पांच प्राण )

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