स्वराज्य की सीधी राह – वीर सावरकर

स्वराज्य की सीधी राह

प्रिय मित्रो ! मैं बंगाल में अपने जीवन में प्रथम बार ही आया हूँ। अतः इस प्रांत की कठिनाईयों का मुझे विशेष ज्ञान नहीं, इसके लिये मैं आप सब भाईयों से क्षमा चाहता हूँ मैं समझता हूँ कि यदि प्रांतीय दुःखों को छोड़कर सावंदेशिक दुःखों का वर्णन किया जाय तो यह अधिक लाभदायक होगा । इसलिये मैं हिन्दू संगठन के विषय में दो-तीन बातों का वर्णन करूंगा, मेरा विश्वास है कि यदि बंगाली हिन्दू उन्हें मानेंगे तो उनका कल्याण होगा।

भाइयो ! यह निश्चय रक्खो कि भारतवर्ष के मुसलमान, हिन्दुओं के साथ मिलकर एक राष्ट्र बनाने को उद्यत नहीं है।

प्रतिक्षण जो कोई भी प्रयत्न कांग्रेस की ओर से हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य के लिये हो रही है और मुसलमानों को अधिकाधिक अधिकार देकर उन्हें प्रसन्न रखने के लिये जो समस्त प्रयत्न चल रहे हैं उन द्वारा वह खाई जो हिन्दू और मुसलमान के बीच में शताब्दियों से विद्यमान है, निरन्तर चौड़ी हो रही है।

हिन्दू मुस्लिम एकता

भाषा के प्रश्न को ही लीजिये-केवल दस वर्ष हुए, दस भी क्यों, पांच ही हुए कि बंगाल में एक ही भाषा प्रचलित थी । भाषा की दृष्टि से भारतवर्ष का अन्य कोई भी प्रांत बंगाल के समान संगठित न था, परन्तु आज मुस्लिम लीग की ओर से इस संगठन को तोड़ने का प्रबल प्रयत्न हो रहा है। उर्दू को राष्ट्रभाषा बनाने की भावना मुसलमानों में दौड़ हो रही है। बंगाल में इतिहास की पाठ्य पुस्तकें आधी बंगाली और आधी उर्दू में लिखी जा रही हैं। हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य की यह अद्भुत मनोवृत्ति है । भाषाओं, धम्मों और जातियों को इकट्ठा कर देने से ही एकता स्थापित नहीं हो सकती । वास्तविक एकता तो हृदय से होती है। मैं एक प्रस्ताव आपके सामने रखता हूं । प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में हिन्दू-मुस्लिम एकता का अवतार बन जाये । वह अपने सिर के आधे भाग पर तुर्की टोपी रक्खे और आधा खाली, आधी ठोड़ी पर दाढ़ी रक्खे और आधी सफाचट, एक टांग में पाजामा पहने और दूसरी में धोती । ऐसा करने से वह हिन्दू-मुस्लिम एकता की सच्ची प्रतिमा बन जायेगा। यदि आप इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर मुस्लिम लीग के पास यह कह कर भेज दे कि हमने सभी में एकता स्थापित करने के लिये यह निर्णय किया है । मैं कहता हूं कि आप देखेंगे कि मुसलमान इस प्रस्ताव को भी ठुकरा देंगे और इस बात के लिये लड़ेगे कि पाजामा तो केवल एक ही टांग पर है, दूसरी पर तो अभी धोती ही है। वे आपको कहेंगे हम दोनों टांगों पर पाजामा चाहते हैं।

भारत के टुकड़े हो रहे हैं

मुसलमान अपने में ही पृथक राष्ट्र बनाने का निश्चय कर चुके हैं । मुस्लिम लीग जैसी उत्तरदायी संस्था के प्रधान श्रीयुत् जिन्ना ने स्पष्ट घोषणा की है कि हिन्दुस्थान को मुस्लिम भारत और हिन्दू भारत में विभक्त कर दिया जाये । ऐसी दशा में मैं समझता हूँ कि मुसलमानों से मैत्री और समझौता करने का विचार ही नहीं उठ सकता । जिस मातृभूमि के लिये शताब्दियों से हम कष्ट उठा रहे हैं, जिसके लिये हमारे बीर हंसते-हंसते फांसी पर झूले, अण्ड मान में अपनी अस्थियों को गलाया और कारागार की काल कोठरियों में अपनी आयु के बहुमूल्य वर्ष यातनाओं में बिता दिये, उस हमारी प्यारी भूमि को मुसलमान टुकड़ों में बांटना चाहते हैं। मैं कहता हूं, जब तक भारत में एक भी हिन्दू जीता है वह इन टुकड़ों को सह नहीं सकता। यह निश्चय रखिये कि मुसलमान भाषा, धर्म और राजनीति की दृष्टि से अपने को हिन्दुओं से पृथक् कर रहे हैं। वे अपने में ही एक राष्ट्र बनाने की धुन में है । हिन्दुओं को आगामी सौ वर्षों तक समझना चाहिये कि इस देश में एक जाति न होकर दो जातियां बसती हैं। मैं चाहता हूँ मेरे कांग्रेसी मित्र भी इस सचाई को समझें परन्तु, वे तो अन्धी आंखों पर दूरबीन लगा रहे हैं । दूसरों के न चाहते हुए भी वे उनसे मित्रता करने को दौड़ रहे हैं, परन्तु मित्रता तो दोनों ओर से होती है। जब तक एक मित्रता न करना चाहे, दूसरा मित्रता करने में सफल नहीं हो सकता । कांग्रेस की नीति एकता स्थापित कर सकती है, परन्तु वह एकता एक घाट पर पानी पीते हुए सिंह और गाय की एकता के समान होगी। इस दशा में गाय की सिंह से एकता तभी हो सकती है जबकि सिंह उसे निगल ले। अतः स्पष्ट है कि कांग्रेस एकता स्थापित नहीं कर सकती । हिन्दू अपने त्याग और कष्टों द्वारा एक हाथ से जो ब्रटिश सरकार से प्राप्त करते हैं वही दूसरे से मुसलमानों को देते जा रहे हैं। इसका परिणाम हिन्दुओं के लिये क्या होगा ? हम हिन्दुओं को अपने ही देश में गुलाम बनकर रहना पड़ेगा।

मैं स्पष्ट कहता हूँ, क्या यह सत्य नहीं है कि बंगाल, सिन्ध, यू० पी० और सीमांत प्रदेश में हिन्दुओं की दशा ब्रिटिश नौकर शाही के समय से भी बदतर है । मैं आप से सच -२ पूछता हूं क्या मुसलमान आज उससे अधिक संतुष्ट हैं जितना कि वे २५ वर्ष पहले थे । कांग्रेस ने शासन-सूत्र अपने हाथ में लेते ही मुसलमानों के प्रति मित्रता का व्यवहार प्रदर्शित किया, परन्तु यह सब कुछ किस के मूल्य पर ? मुझे कहना पड़ता है कि हम हिन्दुओं के ! इस नीति का परिणाम क्या हुआ ? यदि मुसलमान आज किसी से घृणा करते हैं तो वह कांग्रेस है जिससे वे सब से अधिक घृणा करते हैं । कांग्रेसी नीति का यह स्वाभाविक परिणाम हुआ है।

समान व्यवहार का ढोंग

हमारे कांग्रेसी मंत्रियों ने यह सिद्ध करने के लिये कि हमारे शासन में मुसलमानों को कोई कष्ट नहीं., विज्ञप्ति पर विज्ञप्ति प्रकाशित की हैं। मुंबई, मध्यप्रान्त, सिन्ध प्रान्त और विहार के प्रधान मंत्रियों ने यह सिद्ध करने का जी तोड़ यत्न किया है कि मुसलमानों की उत्पति करने के लिये इनने शक्ति-भर प्रयत्न किया है। और उन्होंने क्या किया है ? यह मेरे हाथ में आंकड़े हैं वो इनकी मुस्लिम मनोवृत्ति को बताते हैं । विहार सरकार कहती है कि यद्यपि हमारे प्रान्त में मुसलमानों की संख्या १०% है तो भी हमने मुसलमानों को डिप्टी कलेक्टरों में २८, शिक्षा विभाग में ४% और स्थानीय संस्थाओं में २५% अधिकार दिये हैं यह सब कुछ कांग्रेस की नीति के समर्थन में किया गया है। कांग्रेसी मंत्री यह सिद्ध करने का प्रयत्न कर रहे हैं कि कांग्रेस सब से समान व्यवहार करती है, पर हिन्दुओं के साथ क्या किया ? क्या मैं पूछ सकता हूं कि यह कांग्रेसी मन्त्री किनके वोट से चुने गये ? यदि हिन्दुओं के वोट से, तो क्या यह उनका कर्त्तव्य नहीं कि उन्हें हिन्दुओं के साथ पूर्ण न्याय करना चाहिये, जिनके वोट से वे मन्त्री बने हैं । मैं पूछता हूं कि क्या यह राष्ट्रीयता है कि एक जाति को केवल इसलिये अधिक अधिकार दिये जायें, क्योंकि वह एक विशेष धर्म को मानने वाली है और क्या तुम्हारा उनके प्रति कोई कर्तव्य नहीं जिनकी कृपा से तुम प्रधानमन्त्री बने हो ? एक अन्य प्रधानमन्त्री (पं० पन्त) कहते हैं-“मैं प्रत्येक मुसलमान को खुला आह्वान करता हूँ कि वह बताये कि मेरे प्रांत में उसे क्या दुःख है ?” प्रधान मन्त्री साहब कहते हैं-“जहां कहीं धार्मिक प्रश्न पर झगड़ा हुआ मैंने सदा मुसलमानों का पक्ष लिया । मुहर्रम शांति पूर्वक गुज़रने के लिये हिन्दुओं का बाजा बन्द कर दिया गया।” आगे चलकर पं० पन्त कहते हैं- “मुझे मुसलमानों ने कहा -कि मुहर्रम होने से दस दिन तक हम शोक मनाते हैं। अतः इन दिनों किसी प्रकार का गाना-बजाना नहीं होना चाहिये।” इस पर प्रधानमन्त्री ने क्या किया कांग्रेसी सरकार ने सचमुच आशा जारी की कि मुहर्रम के दिनों में किसी प्रकार का बाजा न करें । पं० पन्त कहते हैं-“कई स्थानों पर शंख बजाना मी बंद कर दिया गया।” सोचिये, ब्रिटिश नौकरशाही के समय में भी हिन्दुओं पर ऐसी रुकायर्टे न थीं। ये हैं राष्ट्रीय संस्था के कारनामे जो हिन्दू महासभा को साम्प्रदायिक कहने का साहस करती है । सुनिये, कई स्थानों पर मंदिरों के घंटों पर भी पाबन्दी लगाई गई । यह सब कुछ कांग्रेस को राष्ट्रीय सिद्ध करने के लिये किया गया पं० पन्त अन्त में कहते हैं- उन दिनों बिना आज्ञा हिन्दुओं का कोई जलूस नहीं निकलने दिया गया। मैं आपसे पूछता हूँ, क्या यह न्याय है ? क्या यह उस संस्था की राष्ट्रीयता है जो अपने को भारत की सबसे बड़ी राष्ट्रीय संस्था कहने का दम भरती है ? मैं समझता हूं, अब हिन्दुसभा देर तक इस नीति को सहन नहीं कर सकती हमें इसके विरुद्ध विद्रोह करना पड़ेगा । मैं जानता हूँ कि हमारे कांग्रेसी मित्र ईमानदार हैं, उनका उद्देश्य भी अच्छा है, परन्तु उनकी नीति दिन-प्रतिदिन पतित हो रही है । कांग्रेस की नीति केवल हिन्दू-विरोधी ही नहीं है, बल्कि वह साम्प्रदायिक और अराष्ट्रीय भी है, परन्तु अब समय आगया है जब कांग्रेस को यह नीति छोड़नी पड़ेगी। जितनी जल्दी वे इस नीति को छोड़ेंगे उतनी ही जल्दी उनका एकता का पागलपन भाग जायगा । और यदि यह नीति जारी रही तो मैं कहता हूँ कि मुसलमान दिन प्रतिदिन आगे बढ़ते जायेंगे, जिसका परिणाम हिन्दुओं के लिये भयानक होगा । हिन्दुओं को अपने ही देश में दास बनकर रहना पड़ेगा । इसमें मुसलमानों का कोई दोष नहीं। इस संसार में वही लोग एक ऐसे हैं जो अपनी मांगें रखते हैं और पूर्ण हो जाती हैं ।

वे जानते हैं कि हिन्दुओं को किस प्रकार ठगा जा सकता है । मैं समझता हूँ, उनकी नीति सफल रही है। वे अपने लिये जितना अधिक प्राप्त कर सकते हैं, करते हैं । परन्तु केवल हिन्दू ही संसार में ऐसे हैं जो मनुष्यमात्र की सोचते हैं, उनसे उदारता और भलाई करते हैं, किन्तु अपने से अन्याय करते चले जाते हैं । हिन्दू राजाओं ने अपनी सहिष्णुता का परिचय देने के लिये अपने धन से मस्जिदें बनाई । मैं समझता हूँ उदारता की दृष्टि से यह ठीक है, परन्तु जहां तक मंदिर और मस्जिद का प्रश्न है यह एक गलत नीति है। यदि हिन्दुओं को जीना है तो उन्हें यह नीति छोड़नी पड़ेगी । आज हमें अपने सिवाय किसी दूसरे की चिन्ता नहीं होनी चाहिये । जब संसार हमारे प्रति न्याय करेगा तो हम भी उनके प्रति न्याय करेंगे। किन्तु जब सब हमें लूटने में लगे हैं, अपने को लुटाना पाप हैं। वह हिन्दू जो नागपंचमी के दिन विषधरों को दूध पिलाता है उसे कोई भी अन्यायी नहीं कह सकता । हिन्दुओ ! मैं तुम से कहता हूँ कि तुम्हें अपने को जीवित रखने के लिये अब अन्यायी भी बनना पड़ेगा।

हिन्दू संगठन की आवश्यकता

मैं आप से कहता हूँ कि आपको अपनी रक्षा के लिये बंगाल में एक दृढ़ हिन्दू संस्था कायम करनी होगी। बंगाली हिन्दुओं के बढ़ते हुए दुःखों को दूर करने का यही एक मात्र उपाय है । यद्यपि यह अत्यन्त सादा है, परन्तु अत्यन्त प्रभावपूर्ण है। प्यारे हिन्दू मित्रो ! मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आज से आगे आप लोगों को हिन्दू राजनीति और हिन्दूसभा का संघटन करना होगा जोकि आपके हितों की रक्षा करने के लिये बाध्य होगी । आप पूछेगे कि बह हिन्दू सभा आपका क्या करेगी ? देखिये, मातृभूमि के सैकड़ों वीरों के बलिदान से आज हमें कुछ २ प्रांतीय स्वाधीनता मिली है । यद्यपि यह अपूर्ण है तो भी इससे हमारा कुछ प्रयोजन तो सिद्ध हो ही सकता है। यदि हिन्दू यह निश्चय करलें कि आगे से नगरसभा और राजसभा में उन्हीं लोगों को भेजा जायगा जो हिन्दू हितों की रक्षा करने की प्रतिज्ञा करेंगे और उसके लिये लड़ेंगे, तो आप देखेंगे कि अगले तीन ही वर्ष के भीतर भारतवर्ष में सात प्रांत ऐसे होंगे जिनमें विशुद्ध हिन्दू मंत्रिमंडल स्थापित होंगे। यू० पी० के ही मामले को लीजिये । यदि पं० पन्त के स्थान पर कोई हिन्दूसभावादी चुना जाता जो खुले आम अपने को हिन्दू कहता और हिन्दू हितों की बकालत करता तो इस प्रांत की दशा क्या होती ? ज्योंही कोई मुस्लिमलीगी उसे हिन्दू परस्त कह कर बदनाम करता, वह तुरन्त मुसलमानों से पूछ उठता मेरे प्रांत में तुम्हारी जनसंख्या क्या है ? यदि उत्तर १५% होता तो वह कहता, क्या तुम्हें नौकरियों में १५% अधिकार मिले हैं ? यदि हां, तो देखो, मैं राष्ट्रीय मन्त्री हूँ। तुम्हें तुम्हारी संख्या के अनुसार अधिकार दे दिये गये हैं मैं हिन्दू मतों से चुना गया हूँ, मेरा यह दसगुणा कर्तव्य है कि मैं हिन्दू हितों की रक्षा करूं। अतः मैं उनके अधिकार काट कर तुम्हें नहीं दे सकता । यदि ऐसे योग्य और साहसी व्यक्ति हिन्दुओं द्वारा चुने जाते तो आज हिन्दू देवियों को मुस्लिम गुण्डों द्वारा भीषण यातनाओं का सामना न करना पड़ता । इस दशा में यदि यू०पी० में कोई हिन्दू लड़की भगाई जाती तो उस गुण्डे को इतना कठोर दण्ड दिया जाता कि वह हिन्दू लड़की को छूने में भी उतना ही डरता जितना यूरोपिवन लड़की को | क्या कारण है कि मुसलमान यूरोपियन लड़कियों को नहीं भगाते ? सीमांत में हिन्दुओं के घर लूटे जाते हैं, हिन्दू लड़कियां भगाई जाती हैं, बच्चे थैले में डालकर उड़ाये जाते हैं। ये दारुण कहानियां आप प्रति-दिन पढ़ते हैं, आपको मालूम कि पठानों ने ऐलिस नाम की अंग्रेज़ लड़की को उड़ाया था उसका क्या परिणाम हुआ ? सारा का सारा गांव धूल में मिला दिया उस दिन से कोई पठान लड़की को छूने का साहस भी नहीं करता । यदि हिन्दू लड़कियों के विषय में भी ऐसा किया जाता तो सीमान्त की यह लूट बन्द हो जाती!

दोष किस का है ?

परन्तु क्या वर्तमान मंत्रियों में यह साहस है ? नहीं, वे नीति का विरोध करते हैं । वे तो हिन्दू मतों से चुने होने तो इस पर भी मुस्लिम हितों की रक्षा के लिये वचन-बद्ध हैं। वे आदमी बुरे नहीं, परन्तु उनकी नीति बुरी है । वे देशभक्त हैं, परन्तु उनकी देशभक्ति भी एक प्रकार का पागलपन है। दोष किसका है ? दोष हमारा है कि हमने ऐसे व्यक्ति चुने । हमारी सारी नीति ही गलत है ।

मुस्लिम नीति

मुसलमानों को देखिये, उनकी क्या नीति है ? उन्होंने उसी को चुनकर भेजा जो उनमें कट्टर मुसलमान था । यही कारण है कि बंगाल और पंजाब इन दो प्रांतों में ऐसे मंत्रीमंडल बने जो स्पष्टतः अपने को मुस्लिम लीगी कहते हैं । बंगाल के प्रधानमन्त्री श्रीयुत् फजलुलहक अपने को खुले आम मुस्लिम लीगी कहते हैं। वे मुस्लिमपने से भरी हुई वक्तृतायें देते हैं । अपने शासन को साफ शब्दों में ‘मुस्लिम राज्य कहते हैं, और अपनी जाति के लिए जितना कर सकते हैं, करते हैं। उन्होंने अपने प्रान्त में ६०% नौकरियां मुसलमानों के लिये सुरक्षित रक्खी हैं। अथ वे कलकत्ता कारपोरेशन को अपने ढंग से सुधारने का प्रयत्न कर रहे हैं । इस व्यक्ति के साहस को देखिये । परन्तु मुस्लिम दृष्टिकोण से यह प्रशंसनीय हैं । अब पंजाब के प्रधान मन्त्री सर सिकन्दर हयात खां को लीजिये । इसके साहस को देखिये । ये मुसलमानों के लिये सब कुछ कर रहे हैं । क्यों ? क्योंकि वे इसी शर्त पर चुने गये हैं कि मुस्लिम हितों की रक्षा करेंगे। दूसरी ओर हिन्दू टिकट से चुने गये मन्त्रियों की दशा देखिये । मुस्लिम मंत्री, मुस्लिमलीग के सदस्य हो सकते हैं, परन्तु हिन्दूमंत्री हिन्दुसभा के सदस्य नहीं हो सकते । हिन्दू वोट से चुने गये कांग्रेसी मन्त्री, हिन्दुसभा के सदस्यों को कहते हैं-तुम कांग्रेस से धकेल कर बाहर कर दिये जाओगे, मानो राष्ट्रीयता का अभि प्रायः यह हो कि हम हिन्दू होना ही छोड़ दें। मानो राष्ट्रीय संस्था से हिन्दुओं का कुछ संबन्ध ही नहीं । क्या यह सत्य नहीं कि हिन्दु सभा का कोई भी सदस्य कांग्रेस का सदस्य नहीं हो सकता ? यदि आज मैं कांग्रेस में जाऊं तो मेरे जाते ही मुझसे पूछेगे ‘क्या तुमने हिन्दु सभा के प्रधानत्त्व से त्यागपत्र दे दिया है ? मैं साफ कहूँगा ‘मैं राष्ट्रीय हूँ कांग्रेस के चार आना टिकट पर नहीं, अपितु अपने हृदय के टिकट पर । जब तक मेरे देह में रक्त की एक भी बूंद शेष है मैं अपने को हिन्दू कहता रहूँगा और हिन्दुत्त्व के लिये लड़ता रहूँगा । हिन्दुओ ! निश्चय करो कि जब आगामी चुनाव आये और कोई प्रतिनिधि आप से वोट मांगे तो आप साफ़-२ पूछना क्या तुम हिन्दू हो ?’ यदि वह कहे नहीं, मैं तो राष्ट्रीय हूँ’ तो आपने कहना ‘जाओ जहां राष्ट्रीय वोट मिलता हो या तब तक प्रतीक्षा करो जब तक राष्ट्रीय बोट नहीं आते यहां तो हिन्दू वोट है। जब चुनाव पद्धति ही सारी साम्प्रदायिक है और उससे चुने जाने में शर्म नहीं तो फिर हिन्दू कहलाने में क्या शर्म धरी है ? जब कोई व्यक्ति आकर आपको राष्ट्रीयता का उपदेश दे और आपको राष्ट्रीय बनने की प्रेरणा करे तो आप उसे कहिये ‘चुनाव के दिन तो आप सब हिन्दू होते हैं, किन्तु ज्योंहि चुनाव समाप्त हुआ, आप अपने को राष्ट्रीय कहने लगते हैं । यह धोखा है, यह धोखा ही नहीं, हिन्दुओं से विश्वासघात भी है। चुनाव के दिन आप बड़े गर्व से अपने को हिन्दू लिखाते हैं हिन्दू कहते हैं और हिन्दुओं से वोट मांगते हैं, परन्तु चुने जाते ही अपने वोटरों को ठुकराकर अपने को राष्ट्रीय कहने लगते हैं। यह धोखा और विश्वासघात महापाप है !

हिन्दू नीति

इसलिये मैं आपसे कहता हूँ कि अब से आगे आपकी राजनीति हिन्दू-राजनीति होनी चाहिये । राष्ट्र-नीति हिन्दू राजनीति के बिना चल ही नहीं सकती। इसलिये प्रत्येक हिन्दू को उन लोगों को वोट देना चाहिये जो स्पष्टतः हिन्दू-हित की रक्षा के लिये वचनबद्ध हों। इसका परिणाम क्या होगा ? ऐसे चुने हुए लोग हिन्दू-हितरक्षक मामले का ही पक्ष ग्रहण करेंगे आज बंगाल में मुसलमानों के लिये ६०% नौकरियां सुरक्षित की गई है, परन्तु यदि आपके सब प्रतिनिधि हिन्दुसभावादी होते तो यह नियम कभी भी पास न हो सकता। वे इसका घोर विरोध करते । वे कांग्रसी सदस्यों की भाँति उदासीनता की मनोवृत्ति प्रदर्शित न करते । कांग्रेस ने ‘साम्प्रदायिक निर्णय’ (Communal Award) के लिये क्या किया? ऐसे महत्त्वपूर्ण विषय पर कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय कही जाने वाली संस्था ने, जो हिन्दू सभा को सांप्रदायिक कहती है, ‘न स्वीकार करो और न इन्कार करो’ की नीति ग्रहण की और आज वही कांग्रेस कहती है ‘जातिगत निर्णय (Communal Award ) तो स्थापित हो चुका है। देखिए हिन्दू सभा ने क्या किया ? हमने इस जातिगत निर्णय को स्वीकार नहीं किया । हम आज भी राष्ट्रीय निर्णय’ की मांग कर रहे हैं। इसलिये मैं कहता हूँ कि आजसे बंगाल में हिन्दुओं की एक ऐसी सुदृढ़ संस्था होनी चाहिये जो तब तक कांग्रेस की नीति पर चलने को बाध्य न होगी जब तक कांग्रेस अपनी नीति में परिवर्तन नहीं कर लेती। यदि कांग्रेस अपनी नीति में परिवर्तन करेगी तो हम मिलकर काम करने को तैयार हैं किन्तु जबतक उसकी यही नीति जारी है, हमें हिन्दू हितरक्षक एक पृथक् संस्था बना कर काम करना होगा, जो बंगाल में हिन्दुओं की हर कदम पर रक्षा करेगी। मैं पूछता हूँ कि हिन्दू टिकट से खड़ा होने में किस बात की लज्जा है ? यदि हमारे उच्च कोटि के विद्वान् और साहसी युवक हिन्दू टिकट से हिन्दुओं के प्रतिनिधि होकर जायें तो इससे देश का बहुत भला होगा अब से हमें अपनी यह नीति ही बना लेनी चाहिये कि हम हिन्दू-विरोधी को वोट न देंगे। कल्पना कीजिये, यदि डाक्टर मुजे समान कट्टर हिन्दू किसी प्रांत का प्रधानमन्त्री बन जाये तो क्या होगा ? समझिये, मैं ही यदि किसी प्रान्त का प्रधान मन्त्री बनाया जाता हूँ ( यद्यपि मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं कभी भी व्यवस्थापिका सभा का सदस्य तक भी बनने को खड़ा न होऊंगा) तो मैं क्या करूंगा ? ज्यों ही मुझे समाचार मिलेगा कि यू० पी० में मुहर्रम के कारण बाजा बन्द कर दिया गया है और विवाह पार्टी भी बाजे के साथ गुज़रनी बंद कर दी गई है, तो मैं तुरन्त मध्यप्रान्त में हिन्दुओं को आज्ञा देता कि मस्जिदों में दी जाती हुई प्रजा को सुनना बन्द करदे, क्योंकि इससे १२ मील दूर स्थित मंदिर की पूजा में खलल पड़ता है। इसका यही हल है। मैं कहता हूँ कि यदि आप ऐसा साहस करके एक बार कह ही दें तो मुसलमान आपके पास आगे और समझौते की कोशिश करेंगे। मैं पूछता हूँ कि यदि मस्जिद के सम्मुख बाजा बजाने पर उन्हें आक्षेप है तो मस्जिद सार्वजनिक सड़कों पर बनने ही क्यों दी जाती है ? क्यों नहीं मुसलमान हिन्दू साधुओं की भाँति जंगलों में जाके ध्यान लगाते ? ऐसा साहस पैदा करने का केवल एक ही तरीका है कि आप हिन्दू को बोट दे और हिन्दू को ही चुनें । इस प्रकार सात प्रांतों में शुद्ध हिन्दू मंत्रिमंडल स्थापित होंगे । वे सब हिन्दुसभा के सदस्य होंगे। इससे प्रजा में हिन्दुसभा का मान ऊंचा हो जायेगा । तब अपने को राष्ट्रीय कहने वाले हिन्दू आपके पास आकर कहेंगे, हम भी तो हिन्दू हैं, यह देखो हमारी चोटी, यह हमारा यज्ञोपवीत, इतनी हमने शुद्धि की ओर इतना हम प्रतिदिन गायत्री का पाठ करते हैं। तत्र वे अपनी गांधी टोपी उतारेंगे और तिरंगा ( कांग्रेस का झंडा ) फेंक कर भगवा झण्डा उठायेंगे, परन्तु यह सब केवल आपके वोट पर ही आश्रित है।

एकता की प्रार्थना !

अन्त में मैं आपसे कहता हूँ कि आप शूद्र, नमः शूद्र, सनातनी, समाजी, सिक्ख, बौद्ध, सभी आपस के भेदभाव भूल कर, छूआछूत मिटा कर तीस करोड़ के तीस करोड़ एक व्यक्ति की भाँति खड़े हो जाये । हम सब एक हैं । हमारी भाषा एक है। हमारी संस्कृति एक है। हमारा इतिहास एक है। सबसे बढ़ कर हमारा नाम एक है। यह देश हमारा है, मुसलमान का नहीं, अंग्रेज़ का नहीं, किसी और का नहीं। मैंने आपको स्पष्ट और सीधा मार्ग बताया है यदि आप इस पर विचार करेंगे और इसे क्रियान्वित करेंगे तो मैं कहता हूँ कि एक बार हम सब इकटठे होकर अपनी मातृभूमि को विधर्मियों और विदेशियों के पंजे से छुड़ायेंगे।


[ यह व्याख्यान हिन्दू-राष्ट्रपति वीर सावरकर ने बंगाल प्रांतीय हिन्दू सम्मेलन के अध्यक्ष पद से खुलना में दिया था- संग्रहकर्ता ]

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